Monday, May 26, 2008

मनोरंजन पार्क

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यूँ देखा जाए तो आज की शाम कुछ अलग नहीं थी। हवा ज़रूर कुछ तेज़ बह रही थी लेकिन ये तो उसकी फितरत है। कितना भी समझाओ उसे पर मानती ही नहीं। मेरी पत्तियों को तो अब आदत सी हो गई है। प्रकृति के आगे किसी की कभी चली है भला !!
खैर, छोड़िये हवा को, वो नहीं मानेगी। वापस आते हैं आज की इस शाम पर । आधी से ज़्यादा बीत चुकी है, सो वक्त ज़रा कम है। चिंटू और उसके दोस्त अपने क्रिकेट के नए नियम बना रहे हैं, और पिछले महीने ४ बार खिड़की के कांच बदलवा चुके नारंग साहब 'कॉलोनी मीटिंग' के लिए शरमा जी और वरमा जी को अपने पाले में करने की कोशिश में लगे हुए हैं। १५ मिनट सहने के बाद विमला जी की कमर तहेदिल, या यूँ कहें की तहेकमर से विश्राम की कामना कर रही है। मालिनी मैडम बच्चों को स्कूल से लेकर लौट रही हैं। दिनभर की नौकरी और २ छोटे बच्चों के बाद उन्हें पार्क की सैर करने की फ़ुर्सत नहीं है। वो बस रोज़ इसी वक्त इधर से गुज़रती हैं और बस हमें देख कर ही संतोष कर लेती हैं। वैसे ये सही ही है। हम कौन सा भागे जा रहे हैं। जब ज़िंदगी इज़ाजत देगी, मालिनी मैडम भी आया करेंगी।
पिंकी अपनी सहेलियों के साथ बाजू के गुलमोहर के नीचे गुड़िया-गुड़िया खेल रही है। पिंटू के गायब होने से पहले उसकी मम्मी भी साथ आती थीं। ४ महीने पहले पिंटू क्रिकेट खेलने के लिए घर से निकला था, उसके बाद से कोई ख़बर नहीं है उसकी। उसकी मम्मी आज भी रह रह कर फ़ोन की तरफ़ देखती रहती हैं। हम भले बहुत सख्त और मज़बूत दिखते हों, लेकिन पिछले महीने जब राखी के दिन पिंकी ने पूछा की क्या वो हमको राखी बाँध सकती है, अन्दर तक हिल गए थे हम। आज पिंकी को फिर से हँसते-खेलते देख कर बहुत अच्छा लग रहा है।
२ साल तक टालने के बाद १० दिन पहले गुप्ता जी ने अपना वज़न कराया और अब वो 'बाबा रामदेव क्लब' के सदस्य हैं। प्रतिदिन नियम से 'कपाल-भाँती' और 'अनुलोम-विलोम' करते हैं। पहले दिन ही उन्होंने घोषणा कर दी थी की जिस दिन १५ किलो वज़न घटा लेंगे, पूरी कॉलोनी में लड्डू बाँटेंगे।
आज १ महीने बाद शुकला जी दिखे हैं। पहले पति-पत्नी दोनों आया करते थे, बिल्कुल नियमित। रिटायरमेंट के बाद बहुत सुकून की ज़िंदगी जी रहे थे दोनों। काफ़ी मेहनत की थी उन्होंने ज़िंदगी भर। शुकला जी के चेहरे से संतुष्टि झलकती थी। किसी बात का ग़म नहीं था उन्हें। जिन्दादिली की मिसाल थे वो। बच्चों से साथ क्रिकेट और कभी कभी फुटबॉल भी खेलते थे !! हमारे बाजू वाली बेंच पर बैठ कर अक्सर मिसेज शुकला को छेड़ा करते थे। मिसेज शुकला तो शर्म से लाल हो जाया करती थीं। बहुत प्यारी जोड़ी थी इनकी। हंसमुख, खुशमिजाज़, ज़िंदगी से प्यार करने वाली जोड़ी।
पिछले महीने मिसेज शुकला का देहांत हो गया। बहुत दुनिया देखी है हमने, लेकिन इतना दुःख शायद ही कभी हुआ होगा। संसार की मोह-माया से मुक्ति मिल गई उन्हें, यही सोच कर ख़ुद को तसल्ली देते हैं लेकिन शुकला जी की तरफ़ देखने की भी हिम्मत नहीं होती है। टूट गए थे बिल्कुल, लेकिन ज़ाहिर नहीं होने दिया उन्होंने। हाँ, पार्क आना ज़रूर छोड़ दिया था उन्होंने। ये पेड़, हरा-भरा मैदान, बच्चे, ये पूरा माहौल उन्हें अतीत की ओर ले जाता था।
आज बहुत दिनों के बाद शुकला जी को मुस्कुराते हुए देख रहे हैं। इस मुस्कान में ग़म है पर शिकायत नहीं है। और किस बात की शिकायत हो। जब तक साथ थे दोनों, बहुत प्यारी ज़िंदगी जी थी उन्होंने। एक दिन तो सभी को जाना है। तो क्यों न कोशिश की जाए एक अच्छी, खुशियों भरी जिंदगी जीने की। शुकला जी कहा करते थे," ये ज़िंदगी जीने के लिए है, मौत के बारे में सोचने के लिए नहीं।" और आज भी वही कर रहे हैं वो।

किसी ने कहा है, और शत-प्रतिशत सही कहा है, "उम्मीद पर तो दुनिया कायम है"। सो, उम्मीद बरकरार है। मालिनी मैडम से मुलाक़ात की उम्मीद, चिंटू के अर्ध-शतक की उम्मीद, गुप्ता जी के लड्डू की उम्मीद, पिंटू के घर लौटने की उम्मीद, और शुकला जी के होठों पर पहले जैसी मुस्कान की उम्मीद ।