Wednesday, May 09, 2007

जनाब

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जनाब ने इक नज़र जो डाली
हम उस नज़र के गु़लाम हो गए
हमारी पलकें क्या झपकीं
वो कुछ बेरुखे से हो गए

मुँह फेर कर चले गए
इक बार सोचा तक नहीं
ये दिल जो इतने ज़ोर से टूटा
पलट कर देखा तक नहीं

जनाब जो रूठ कर गए
कोई मुकम्मिल वजह रही होगी
आप गलत ना समझियेगा
ख़ता ज़रूर हमारी रही होगी

दिल तोड़ा, दिल चीज़ ही क्या है
जनाब तो इस जान के हकदार हैं
इक बार कह कर तो देखें
हम मौत से ज्यादा वफ़ादार हैं
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4 comments:

ePandit said...

हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है। नियमित लेखन हेतु मेरी तरफ से शुभकामनाएं।

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ई-पंडित

Daroga said...

@ Shrish
dhanyawad :)

Lady Godiva said...

aisa kya ho gaya, jo dil se aisi aawaaz nikli?

Daroga said...

@ Godiva
andar ki baat ye hai ki dil se awaaz nikli hi nahin :P
aise hi kuchh kuchh likh diye.... nothin srs :)